मोहित सोनी
सीहोर-आष्टा। वर्तमान परिवेश और टिकिट वितरण में हुए गोलमाल की चर्चाओं ने भाजपा प्रत्याशी के लिए खासी परेशानियां पैदा कर दी है। माहोल को देखकर आसानी से अंदाजा लगा सकते हे की भाजपा के लिए इस बार चुनाव जीतना इतना आसान नहीं हे?
17 नवंबर को होने वाले मतदान की अब उलटी गिनती आरंभ हो गई है, लेकिन प्रत्याशी के रूप में भारतीय जनता पार्टी का यह निर्णय आज भी मतदाता और निष्ठावान कार्यकर्ताओं को जरा भी गले नही उतर रहा है। पार्टी के प्रदेश नेतृत्व द्वारा जमीनी कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने से स्थानीय कार्यकर्ता या तो इस चुनाव में कार्य ही नही कर रहे हे, या महज औपचारिकता निभा रहे हैं। ऐसा इसलिए प्रतीत हो रहा है की ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंपर्क के लिए भाजपा प्रत्याशी के साथ कुछ गिनती वार कार्यकर्ता नजर आ रहे हैं, जो रोजाना फेसबुक पर ही दिख रहे हे और फेसबुक से ही प्रत्याशी को जिताने का दावा भी कर रहे हे। अब दावा कितना सच साबित होगा यह तो आने वाली 3 तारीख को ही पता चल पाएगा। लेकिन आज प्रत्याशी के साथ चल रहे चंद समर्थक जो की फेसबुक को ही जीत की ढाल बनाकर रोजाना लाइव प्रसारण कर रहे हे, यह लाइव शो ही स्वय कह रहा की इस बार ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपाई कही गुम हो गए हे, इससे लग रहा हे की भाजपा की यह पक्की सीट भी इस बार डगमग डोल रही हैं। वैसे भी गोपाल सिंह इंजिनियर के बारे में पूरे विधान सभा क्षेत्र में यह भी चर्चा है की यह वही व्यक्तित्व हे, जो मूल रूप से कांग्रेसी होकर पिछली तीन विधान सभा चुनाव हार चुके हे, और अब यही व्यक्ति अपनी जुगाड से भाजपा प्रत्याशी होकर चुनावी मैदान में आ गए है। यही कारण हे की मतदाता भी स्वीकार नही कर पा रहे हे। मूल कार्यकर्ता आज दबी जुबान में कह रहे हे की यह व्यक्ति मूल भाजपाइयों का अधिकार छीन कर चुनावी मैदान में अर्थ की सीढ़ी चढ़ कर आ गया है। पार्टी के इस निर्णय से आज मूल भाजपाई स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। यही कारण है की शहर में जहा जनसंपर्क और प्रचार के लिए चंद छुटभैया ही नजर आ रहे है वही ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंपर्क और प्रचार के लिए कार्यकर्ताओं की भारी कमी साफ दिखाई दे रही है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी प्रत्याशी का मूल पार्टी के लोगो से मोह भंग नही हुआ है। वही बात की जाए मूल भाजपाइयों की जो सालो से विधानसभा चुनाव लडने के सपने देख रहे थे तो उनका सपना टूटने के साथ निर्दलीय चुनाव लडने का भी मन बन गया लेकिन मुखिया के समझाने के बाद मन में कलेश बैठ गया। ऐसे में लगता है कही न कही मन का कलेश अंदरूनी रूप से आष्टा विधानसभा की सीट को कांग्रेस की झोली में डालने का अवसर प्रदान कर सकता है।