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मध्य प्रदेश

राहत के लिए… दुनिया ने चाहा, माना, सराहा लेकिन अपने शहर और सूबे ने बिसराया

भोपाल। दुनिया के मकबूल और मारूफ शायर डॉ राहत इंदौरी भले अपने फन, लहजे और कलाम के लिए दुनियाभर में पहचाने जाते हों, लेकिन उनके अपने शहर और प्रदेश ने उन्हें घर का जोगी जोगड़ा… की तरह ही माना है। यही वजह है कि
डॉ राहत इंदौरी के इंतकाल के चार वर्षों में मप्र उर्दू अकादमी और बाकी साहित्यिक संस्थाओं ने न तो कभी राहत को खिराज पेश की और न उनके नाम पर कोई बड़ा आयोजन ही किया।
11 अगस्त को इस मकबूल शायर डॉ राहत इंदौरी की बरसी (पुण्यतिथि) पर उनके चाहने वालों के मन में कई सवाल खड़े हैं। इन्हीं में शामिल इंदौर के एक पत्रकार, लेखक, शायर अखिल राज ने अपने सोशल मीडिया पर नाराजगी जाहिर करते हुए कई सवाल उठाए हैं:

1- क्या डॉ. राहत इंदौरी का इंटरनेशनल शायर होना, उर्दू अकादमी की नज़र में गुनाहे-अज़ीम था?
2- क्या डॉ.राहत इंदौरी का अपनी 4-5 किताबें प्रकाशित करवाना भी उर्दू अकादमी के नज़रिए से कोई गुनाह था, जिन किताबों की डिमांड देश ही नहीं बल्कि हर उस मुल्क में है जहां उर्दू का वजूद है।
3- क्या डॉ. राहत इंदौरी का 50 से ज्यादा फिल्मों में कामयाब गीत लिखने को भी उर्दू अकादमी ने गुनाह माना?
4- डॉ. राहत इंदौरी पर हिंदुस्तान और पाकिस्तान में कुछ लोग पीएचडी कर चुके हैं और कुछ कर रहे हैं, क्या इसे भी उर्दू अकादमी ने राहत इंदौरी के गुनाहों में में शामिल किया है?
5- क्या सारी दुनिया के मुशायरों के ज़रिए इंदौर और मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश का नाम रौशन करना भी उर्दू अकादमी की नज़र में राहत इंदौरी साहब का गुनाह था।
कोई भी इन सवालों को सुनकर एक पल में जवाब दे सकता है कि नहीं, ये कोई गुनाह नहीं बल्कि वो उपलब्धियां थीं, जिस पर अदब से जुड़ा हर इंदौरवासी क्या प्रदेशवासी भी गर्व महसूस करता है। कोई भी अपनी साधारण बुद्धि से ये कह सकता है कि डॉ. राहत इंदौरी ये उपलब्धियां असाधारण थीं और वो बड़े सम्मान के हकदार थे। लेकिन अफसोस कि शायद मप्र उर्दू अकादमी को राहत इंदौरी की इतनी बड़ी-बड़ी उपलब्धियां भी कम नज़र आईं। तभी तो उनके इंतकाल के चार साल के अंदर आज तक उर्दू अकादमी के ज़िम्मेदाराना के मुंह से श्रद्धांजलि के दो शब्द तक नहीं निकले। वास्तव में ऐसा करके उर्दू अकादमी ने सिर्फ राहत इंदौरी साहब का अपमान नहीं किया है, बल्कि पूरे इंदौर शहर को अपमानित किया है। मेरी समझ में ये नहीं आता कि हमारे शहर की इतनी बड़ी शख़्सियत को अपमानित करने के बाद भी स्थानीय आयोजक उर्दू अकादमी से ये सवाल क्यों नहीं पूछते कि आखिर डॉ.राहत इंदौरी ने ऐसा क्या गुनाह किया था कि उर्दू अकादमी ने आज तक उन्हें श्रद्धांजलि नहीं दी? क्यों इतने अज़ीम शायर की याद में उर्दू अकादमी ने आज तक कोई प्रोग्राम नहीं किया?

इंदौर के इस महान साहित्यकार के साथ उर्दू अकादमी क्यों उपेक्षा का व्यवहार कर रही है?

अगर उर्दू अकादमी राहत साहब की इन उपलब्धियों को कम मानती है तो वो बताए कि उसके पास इस दौर में डा. राहत इंदौरी से बड़े नाम कौन-कौन से हैं।
मैं दावे से कहता हूं कि अगर डॉ. राहत इंदौरी का नाम डॉ. राहत भोपाली होता तो उर्दू अकादमी ने उनके नाम से कबसे ही अवार्ड की भी घोषणा कर दी होती और न जाने कितने बड़े -बड़े प्रोग्राम अब तक करवा दिया होते।
इंदौर शहर के अदीबों और जागरूक नागरिकों को अगर अपने शहर में साहित्य की रक्षा करनी है तो अब उन्हें इन नाइंसाफियों के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करनी ही होगी और सवाल पूछने ही होंगे। वरना ये लोग हमारी जबानों को अपनी तिजोरियों में कैद कर हमें हमेशा के लिए ग़ुलाम बना लेंगे।

इनका कहना है

मप्र उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ नुसरत मेहदी का कहना है कि अकादमी से किए जाने वाले कार्यक्रम संस्कृति विभाग से तय किए जाते हैं। इनका सालाना कैलेंडर निर्धारित होता है। साहित्यिक संस्था तहजीब के डॉ अंजुम बाराबंकवी का कहना है कि डॉ राहत इंदौरी किसी शहर, प्रदेश तक सीमित नहीं थे। उन्होंने दुनियाभर में हिंदुस्तान का नाम रौशन किया है। उनकी अकीदत में संस्थाएं अपने स्तर पर कार्यक्रम आयोजित करती हैं लेकिन उनके सीमित साधनों से डॉ राहत इंदौरी के किरदार जैसा कार्यक्रम हो पाना मुमकिन नहीं है। यह सरकारी एजेंसी ही कर सकती हैं और उन्हें इसके लिए प्रयास करना चाहिए।